इंदौर।
आज होने वाली आइडीए संचालक मंडल की बैठक में योजना 166 को फिर से आइटी हब के रूप में बदलने का प्रस्ताव पास किया जाने वाला है। तीन साल में दो बार इसकी प्लानिंग बदल चुकी है। पहले मेडिकल हब से बदलकर आइटी हब किया, फिर फिनटेक सिटी और अब फिर से आइटी हब किया जा रहा है।
सुपर कॉरिडोर पर टीसीएस से लगकर मेडिकल हब के नाम से आइडीए ने योजना 166 लागू की थी। इस योजना में केवल स्वास्थ्य उपयोग के ही भूखंड निकाले जाने की योजना थी, लेकिन स्वास्थ्य सेवा संबंधी निवेशकों के प्रस्ताव न मिलने और किसानों के विरोध के चलते योजना आगे नहीं बढ़ सकी। टीसीएस और इन्फोसिस का काम शुरू होने के बाद आइडीए को लगा कि यहां भी आइटी कंपनियां आ सकती हैं। इसके चलते 2015 में इसकी प्लानिंग बदल दी गई और आइटी हब के रूप में लाने का प्रस्ताव बोर्ड ने पास कर दिया। आइटी कंपनियां नहीं आईं तो 2016 में इंवेस्टर्स समिट के पहले फिनटेक सिटी का प्रोजेक्ट बना और बोर्ड में पास कर दिया गया। फिनटेक सिटी के रूप में कमर्शियल हब बनाने की प्लानिंग थी, जहां नेशनल-इंटरनेशनल कंपनियों से निवेश की उम्मीद थी, इसमें भी सफलता नहीं मिली। अब फिर इसे आइटी हब के रूप में बदला जा रहा है।
रियायती दरों पर देंगे प्लॉट
आइडीए का कहना है कि टीसीएस, इन्फोसिस का काम शुरू होने के बाद आइटी कंपनियों की मांग आ रही है। इसलिए योजना 166 के भूखंडों का विक्रय आइटी कंपनियों को किया जा रहा है। शासन की आइटी पॉलिसी के तहत ये भूखंड रियायती दरों पर दिए जाएंगे। इसके लिए अलग से नीति तैयार की गई है, जो मंजूरी के लिए भोपाल भेजी है, शासन की मंजूरी के बाद आइटी कंपनियों को भूखंड दिए जाएंगे।
सीएम ने पास की थी फिनटेक सिटी
आइडीए ने दावा किया था कि फिनटेक सिटी के माध्यम से लगभग 75 हजार रोजगार के अवसर मिलेंगे। सीएम को भी प्रोजेक्ट जंचाया गया और इंवेस्टर्स समिट के पहले उनकी मंजूरी ले ली गई। समिट में इसके ब्रोशर की लांचिंग करवाई और अर्बन डेवलमेंट के सेक्टरोरियल सेमिनार में निवेशकों के सामने इसका प्रजेंटेशन भी दिया गया था। इसके लिए कंसल्टेंट भी नियुक्त किया गया, जिसे निवेशकों को लाने का जिम्मा दिया गया था, लेकिन दो साल बाद भी कोई निवेशक नहीं मिला।
क्या मिलेगी बची हुई जमीनें?
योजना 166 में टिगरिया बादशाह और छोटा बांगड़दा गांव की ५०० एकड़ जमीन आ रही है। इससे करीब 70 एकड़ जमीन पहले ही निकालकर टीसीएस को दी जा चुकी है। इसे मेडिकल हब के लिए पीपीपी मॉडल पर कोशिश की गई, पर कोई निवेशक आगे नहीं आया। फ्लॉप मानकर कई किसानों ने भी जमीनें देने से इनकार कर दिया था। आज भी पूरी जमीनें नहीं मिल पाई हैं।
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